35kg Weight Loss करने का मेरा Secret!
सलोनी की यह कहानी केवल वेट लॉस की नहीं, बल्कि खुद को पहचानने, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार लाने और एक नई दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणादायक जर्नी है। उन्होंने न केवल अपना वजन घटाया बल्कि अपने अनुभवों से अन्य लोगों को प्रेरित करने का भी निश्चय किया।
प्रारंभिक जीवन और संघर्ष
सलोनी बचपन से ही अपने माता-पिता की इकलौती संतान थीं। स्वाभाविक रूप से घर में उन्हें विशेष प्यार और दुलार मिला। यही कारण था कि उनके खाने-पीने पर कोई रोक-टोक नहीं थी। जो भी मांगतीं, वह उन्हें तुरंत मिल जाता। हालांकि यह प्यार कब ओवरईटिंग और मोटापे में बदल गया, उन्हें पता ही नहीं चला।
आठवीं कक्षा तक पहुंचते-पहुंचते सलोनी का वजन काफी बढ़ चुका था। उस समय वह 85 किलो की थीं। इस दौरान उनके पिता की तबीयत बिगड़ने लगी और उन्हें एक्यूट किडनी फेलियर का सामना करना पड़ा। इस कठिन समय में सलोनी ने तनाव को संभालने के लिए खाने का सहारा लिया। जब भी उन्हें चिंता या उदासी होती, वे खाने की तरफ दौड़ पड़तीं। इस आदत ने उनका वजन और बढ़ा दिया।
स्वास्थ्य समस्याएं और दवाईयों का सहारा
नौंवी-दसवीं कक्षा के दौरान सलोनी को हाई ब्लड प्रेशर जैसी समस्या हो गई। उस छोटी उम्र में ही उन्हें 35 mg की ब्लड प्रेशर की दवा लेनी पड़ रही थी। यह स्वास्थ्य समस्या उनके बढ़ते वजन और खाने की गलत आदतों का ही नतीजा थी। इस दौरान उनके पिता का किडनी ट्रांसप्लांट हुआ, जिससे घर में तनाव और बढ़ गया। इस मुश्किल दौर में भी सलोनी ने अपनी आदतों में बदलाव नहीं किया और खाने की लत बनी रही।
जिंदगी बदलने वाली सीख
ट्रांसप्लांट के बाद जब सलोनी के पिता स्वस्थ होकर घर लौटे, तो उन्होंने एक महत्वपूर्ण बात कही जिसने सलोनी की जिंदगी बदल दी। उन्होंने कहा,
“बेटा, अगर तुम्हें मेरी तरह अस्पताल में बेड पर नहीं पड़ना है और बड़े ऑपरेशन से बचना है, तो अपनी सेहत पर काम करना शुरू कर दो।”
इस बात ने सलोनी को झकझोर कर रख दिया। यही वह क्षण था, जब उन्होंने अपनी लाइफस्टाइल सुधारने का निर्णय लिया।
डाइटिंग का सफर और परेशानियां
कॉलेज में पहुंचते ही सलोनी ने चंडीगढ़ की एक प्रसिद्ध डाइटिशियन से संपर्क किया। वहां उन्हें सख्त डाइट प्लान दिया गया जिसमें कई चीजों पर पाबंदी थी – न रोटी, न चावल, न जंक फूड। डाइट प्लान ने उनकी मानसिक स्थिति पर भी नकारात्मक प्रभाव डाला।
सलोनी पार्टीज में जातीं, लेकिन कुछ खा नहीं पातीं। जब सब दोस्त मस्ती कर रहे होते, तब वो चुपचाप एक कोने में बैठकर सिर्फ सलाद खातीं। यह स्थिति उन्हें और अधिक उदास करने लगी।
खुद की खोज और बदलाव
सलोनी को महसूस हुआ कि ऐसा कठोर डाइट प्लान लंबे समय तक अपनाना मुश्किल है। उन्होंने अपने खाने-पीने की आदतों को संतुलित तरीके से सुधारने का फैसला किया। उन्होंने अपने ही शरीर पर प्रयोग करके एक नई जीवनशैली अपनाई, जिसमें घर का बना साधारण भोजन था, जिसे थोड़ा-सा हेल्दी टच देकर न्यूट्रिशनल बनाया गया।
सलोनी ने कैलोरी डेफिसिट (Calorie Deficit) का सिद्धांत अपनाया – यानी जितनी कैलोरी शरीर को चाहिए, उससे थोड़ा कम खाना। इसी सादगी और निरंतरता के दम पर उन्होंने 35 किलो वजन घटा लिया।
सफलता और दूसरों को प्रेरित करना
अपनी जर्नी से प्रेरित होकर सलोनी ने न्यूट्रिशन साइंस में बैचलर्स करने का निर्णय लिया। उन्होंने सीखा कि अच्छी सेहत के लिए केवल डाइट ही नहीं, बल्कि मेंटल हेल्थ का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। उन्होंने महसूस किया कि अगर मानसिक स्वास्थ्य ठीक नहीं है, तो कोई भी डाइट कारगर नहीं होगी।
सलोनी का मानना है कि डाइट हमेशा ऐसी होनी चाहिए जिसे आप जिंदगीभर आसानी से फॉलो कर सकें। इसके लिए उन्होंने 80/20 रूल अपनाया – 80% हेल्दी फूड और 20% अपनी पसंद का खाना।
क्लाइंट्स की सफलता और सकारात्मक बदलाव
सलोनी के पास एक क्लाइंट आईं जिनका वजन 85 किलो था। वह कई तरह की सख्त डाइट्स अपनाकर परेशान हो चुकी थीं। सलोनी ने उन्हें समझाया कि हेल्दी डाइट का मतलब खाने से परहेज करना नहीं, बल्कि सही मात्रा में सही चीजें खाना है।
उन्होंने उन्हें सिखाया कि घर में बनने वाले सामान्य भोजन को ही बैलेंस करके पोषणयुक्त बनाया जा सकता है। धीरे-धीरे उस क्लाइंट ने 25 किलो वजन घटा लिया और उनकी मानसिक स्थिति भी बेहतर हो गई।
महिलाओं के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान
सलोनी का मानना है कि महिलाओं की मेडिकल समस्याओं पर खुलकर बात होनी चाहिए। महिलाओं को पीसीओडी, मेनोपॉज, प्रेग्नेंसी, पोस्टपार्टम जैसी समस्याएं झेलनी पड़ती हैं, लेकिन इन पर चर्चा करना अभी भी वर्जित सा माना जाता है।
उन्होंने अपनी क्लाइंट्स को न केवल वजन घटाने में मदद की, बल्कि उनके स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सलाह और प्रेरणा
सलोनी का संदेश सरल है –
“आपका डाइट प्लान ऐसा हो, जिसे आप पूरी जिंदगी फॉलो कर सकें। हेल्दी खाने के साथ-साथ अपनी मानसिक स्थिति का भी ध्यान रखें, क्योंकि जब आपकी मानसिक स्थिति ठीक होगी तभी आप अपनी डाइट पर सही तरीके से फोकस कर पाएंगे।”
उन्होंने सप्लीमेंट्स पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता के खिलाफ भी लोगों को सचेत किया। उनका कहना है कि सप्लीमेंट्स तभी लिए जाएं जब उनकी वास्तविक जरूरत हो और ब्लड रिपोर्ट्स में कोई कमी दिखाई दे।
निष्कर्ष
सलोनी की इस प्रेरणादायक कहानी से यह सीख मिलती है कि वजन घटाना एक आसान प्रक्रिया हो सकती है, यदि हम इसे जरूरत से ज्यादा जटिल न बनाएं। खाने-पीने की छोटी-छोटी आदतों में बदलाव लाकर, अपनी प्लेट को संतुलित बनाकर और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखकर कोई भी स्वस्थ और खुशहाल जीवन जी सकता है।